राजस्थान के राजसमंद स्थित जेके टायर फैक्ट्री में कांग्रेस समर्थक इंटक मजदूर यूनियन और भाजपा समर्थक भारतीय मजदूर संघ की वर्चस्व की लड़ाई खूनी संघर्ष में तब्दील हो गई। इंटक समर्थक मजदूरों ने भामस समर्थक मजदूरों पर हमला कर दिया। इसमें एक मजदूर की मौत हो गई, जबकि दो अन्य घायल हो गए। इसके बाद फैक्ट्री में पुलिस तैनात कर दी गई। इधर, फैक्ट्री प्रबंधन ने मृत मजदूर के परिजनों को 25 लाख रुपये की राहत राशि दिए जाने की घोषणा की है। बताया गया कि घटना रविवार की है, जब दूसरी शिफ्ट के मजदूर काम के बाहर निकल रहे थे। इसी दौरान इंटक समर्थक मजदूरों ने नारेबाजी शुरू कर दी।

इसी दौरान उनकी भारतीय मजदूर संघ समर्थक मजदूरों से कहासुनी हुई जो बाद में मारपीट में बदल गई। जिसमें इंटक समर्थक मजदूरों ने भामस के मजदूर कांकरोली निवासी गोपाल (58) पुत्र मोहनलाल शोभावत को लात-घूंसों से इतना पीटा की उसकी मौके पर ही जान चली गई, जबकि वीरेंद्र और अयूब लहूलुहान होकर घायल हो गए। इसकी सूचना पुलिस को मिली तो तत्काल पुलिस बल भेजा गया तथा हल्का बल प्रयोग कर मजदूरों को तितर-बितर किया। पुलिस ने मजदूर गोपाल, वीरेंद्र मिश्रा तथा अयूब अली को तत्काल आरके जिला अस्पताल भेजा। जहां चिकित्सकों ने गोपाल को मृत घोषित कर दिया। जबकि अन्य दो मजदूरों की प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी कर दी गई।

पुलिस ने श्रमिकों की ओर से मिली रिपोर्ट के अधार पर इंटक समर्थक श्रमिक किशन सिंह, राजेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह, तेज सिंह, हरि सिंह सहित दो दर्जन श्रमिकों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया। इनमें से कुछ आरोपितों को हिरासत में ले लिया गया है तथा फैक्ट्री में पुलिस टीम तैनात कर दी। भामस के जिलाध्यक्ष दिनेश पालीवाल की ओर से देर रात मृत मजदूर का शव फैक्ट्री परिसर में अपने झंडे के तले रखने के बाद उसके घर भिजवाया तथा काम सुचारू रूप से जारी रखने का निर्णय लिया। फैक्ट्री में काम नियमित दिनों की तरह सोमवार को भी जारी है।

इधर, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेश गुप्ता ने बताया कि गत सत्रह नवंबर को भी फैक्ट्री में मारपीट की घटना के बाद पुलिस तैनात थी लेकिन पंचायत चुनाव को लेकर जाप्ता कम होने पर उठा लिया गया था। घटना के बाद जाप्ता तैनात कर दिया गया है। गौरतलब है कि साल 1978 से 2010 तक फैक्ट्री में सीटू यूनियन का वर्चस्व रहा था। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो इंटक ने वर्चस्व जमा लिया। भाजपा सरकार बनने पर भारतीय मजदूर संघ यहां वर्चस्व में आ गया लेकिन जैसे ही प्रदेश में फिर से गहलोत सरकार आई तो इंटक ने फिर से वर्चस्व बढ़ाने लगी और उसके समर्थक मजदूरों की भामस समर्थक मजदूरों से आएदिन झड़प होने लगी।